चित्र में जो बच्चियां योग की जटिल मुद्रा संख्यासन करती दिख रही हैं, ये अयोध्या जिले के मिल्कीपुर ब्लॉक के भूलईपुर के सरकारी स्कूल की हैं। ये अभी ब्लॉक स्तर पर स्पर्धा में अव्वल आई हैं और अब जिला स्तर की प्रतिस्पर्धा में जाएंगी ।
यह आर्थिक सामाजिक रूप से बेहद कमजोर बच्चों का विद्यालय है। शायद ही पर्याप्त पौष्टिक भोजन भी मिलता हो। उच्च शिक्षा तक इनकी पहुंच से दूर है। असल में ये बच्चे अपना बचपना ही नहीं महसूस कर पाते। घर परिवार, सामाजिक कुरीतिओं और अभावों से जूझते ही सीधे वयस्क बन जाते हैं।
शायद ऐसे ही खेल, स्पर्धा इनके जीवन की पूंजी होते हैं जिनकी यादों के सहारे ये अपने अस्तित्व को महसूस करते हैं।
और हाँ! इन बच्चों के बचपन में रंग भरने, उन्हें योग और खेल में निपुण बनाने का काम करती हैं लेखिका और वहां शिक्षिका भारती पाठक।
सच में इतने अभावों में जीने वाले बच्चों को उनकी खासियत का एहसास करवा कर समाज के सामने खड़ा कर देना एक पावन कार्य ही है।
उत्तर प्रदेश के दूरस्थ अंचलों में ऐसे कई शिक्षक हैं जो अंतिम छोर पर खड़े बच्चों की बेहतरी के लिए महज नोकरी करने की प्रवृति से आगे बढ़ कर काम कर रहे हैं।
बधाई भुलईपुर के बच्चों, शिक्षकों खासकर भारती पाठक।
