प्रदेशवार्ता. मप्र उच्च न्यायालय का एक फैसला चर्चा में हैं. इस फैसले में कोर्ट ने जज को ही नाप दिया. अपराधियों पर सख्त टिप्पणी करने वाली कोर्ट ने जज को भी खूब सुनाई. कहा ये गंभीर कदाचार का मामला हैं. इसे माफ नहीं किया जा सकता.
मप्र उच्च न्यायालय ने एक सिविल जज को नौकरी से निकालने का फैसला सही ठहराया हैं. जज पर गंभीर आरोप लगा था, जज ने आपराधिक मामलों में बिना फैसला लिखे ही आरोपियों को बरी कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने 21 अप्रैल को फैसला सुनाया था. बेंच ने आरोप को गंभीर कदाचार का माना और कहा कि इन्हें माफ नहीं किया जा सकता.
पूरा मामला जज महेंद्र सिंह तारम का हैं. जो नौकरी से बाहर किए गए. महेंद्र सिंह तारम मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से क्लास II सिविल जज बने थे। जब वे मंडला जिले की तहसील निवास में पदस्थ थे, तब जिला जज (सतर्कता) ने अचानक निरीक्षण किया तो उनके कामकाज की पोल खुल गई. निरीक्षण में पाया गया कि तारम ने तीन आपराधिक मामलों में बिना फैसला लिखे ही अंतिम फैसला सुना दिया था। इसके बाद उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और विभागीय जांच की गई। जांच अधिकारी ने सभी पांच आरोपों को सही पाया। तारम को मध्य प्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के नियम 3 के तहत गंभीर कदाचार का दोषी पाया गया। अब कोर्ट ने भी उनके आचरण को गंभीर कदाचार माना और इसे माफ किए जाने लायक नहीं समझा.
