प्रदेशवार्ता. आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता और सहायिकाओं को शासन शासकीय सेवक नहीं मानता हैं. तर्क दिया जाता है कि हम इन्हें वेतन नहीं देते, मानदेय दिया जाता है. लेकिन हाईकोर्ट में एक याचिका का जवाब देते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता को सरकारी कर्मचारी बताया. दरअसल एक युवक अपने पिता के निधन के बाद पंचायत में अनुकंपा नियुक्ति चाहता था, इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. लडके की मां आंगनबाडी कार्यकर्त्ता हैं. बस मां के आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता होने की बुनियाद पर विभाग ने तर्क दिया है कि मां की सरकारी नौकरी हैं. बेटे को अनुकंपा का लाभ नहीं दे सकते. लडके के वकील ने हाईकोर्ट में इस झूठ के धागे खोले और तर्क दिया कि शासन का बायलाज आंगनबाडी कार्यकर्त्ता को सरकारी कर्मचारी नहीं मानता हैं. अतः लडके को अनुकंपा नौकरी मिले.
अब हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने अनुकंपा नियुक्ति मामले में अहम फैसला देते हुए अनुकंपा पर विचार करने के निर्देश दिए है. मामला दतिया निवासी अविनाश वर्मा का है। उनके पिता पंचायत सचिव थे जिनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था. दायर याचिका में बताया गया कि विभाग ने अनुकंपा नियुक्ति देने से मना कर दिया। विभाग द्वारा बताया गया है कि अविनाश की मां 5 साल से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है, ऐसे में शासकीय नौकरी नहीं दी जा सकती। अविनाश के अधिवक्ता धर्मेंद्र शर्मा ने कोर्ट को बताया गया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को वेतन नहीं मानदेय मिलता है, इसलिए मध्य प्रदेश सिविल सर्विस नियम 1966 लागू नहीं होता है। ऐसे में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता चाहे तो चुनाव लड़ सकती है, लेकिन शासकीय सेवक चुनाव नहीं लड़ सकता है. लिहाजा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को शासकीय सेवक नहीं माना जा सकता।
