प्रदेशवार्ता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज से दस साल पहले 2015 में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर मंशा जाहिर की थी कि देश में सरपंच पति संस्कृति खत्म होना चाहिए. लेकिन दस साल बाद भी मध्यप्रदेश में पीएम मोदी की यह मंशा साकार नहीं हो सकी है. पीएम मोदी ने कहा था कि कानून ने महिलाओं को अधिकार दिए, जब कानून उन्हें अधिकार देता है तो उन्हें अवसर भी मिलना चहिए. इस पति संस्कृति को खत्म करें.पीएम की मंशा क्या पूरी हुई हैं..? नगर निगम चुनाव लडने के लिए महिलाओं का भी एक बडा कैडर दोनों पार्टियों कांग्रेस.भाजपा के पास मौजूद था. लेकिन हुआ क्या…? एक झटके में अधिकार देने के समय दरकिनार कर दिया गया. पार्टी ने महापौर से लेकर पार्षद तक के टिकट बांटे.. नतीजा क्या आया..! क्या महिलाएं अपने फैसलों में आजाद हुई…? महिलाओं के कैबिन में पैर पसारकर क्या पति महोदय नहीं बैठ रहे…! क्या सत्ता की खनक में किसी अफसर की हिम्मत है जो पतिराज पर ऐतराज जता दे…? कहानी लंबी है और संघर्षशील महिलाओं को अपनी जगह मिले इसके लिए अभी और फासला तय करना पडेगा. सीएम डा. मोहन यादव पीपलरावां की सभा में पतिराज पर अपने अंदाज में तंज कस गए. उनके तंज में कई सवाल थे. असल कडवा सच यही है कि सरकार तो चाहती है कि महिलाएं राजनीति में आगे आएं. इसके लिए ही वार्ड और महापौर का पद रिजर्व किया जाते हैं. लेकिन नेता लोग अपनी पत्नी या बहू को चुनाव लड़वाते हैं ताकि चाबी उनके हाथ में ही रहे.
