राजनीति

जंगल से आदिवासियों के घास पूसे के घर हटाना महज संयोग था या राजनीतिक वनवास खत्म करने का प्रयोग…?

प्रदेशवार्ता. सत्य और असत्य में जितना फर्क है उतना ही बडा फर्क संयोग और प्रयोग में हैं. मप्र शासन के वनमंत्री विजयशाह अभी कुछ दिनों से वनवास काट रहे थे. कर्नल सोफिया कुरैशी विवाद में वे बियाबान में जाने को मजबूर हो गए थे. पार्टी चाहकर भी शाह को हथेली नहीं लगा सकी. मंत्री पद तो विजयशाह ने वैसे भी नहीं छोडा था, बस एक अच्छी कहानी की जरूरत थी, जो उनको वापस मुख्य धारा में स्वीकार्यता के साथ ले आए. अब देवास जिले के घटनाक्रम को देखते है जिसे वन विभाग ने रचा. अचानक वन विभाग के अफसरों को खिवनी अभ्यारण का अतिक्रमण नजर आ गया. ठीक बारिश के मौसम में वन विभाग गहरी नींद से जाग गया. जंगल में घर के नाम पर आदिवासी परिवारों के पास केवल घास पूस से सिर छूपाने की जगह थी. ये कच्चे से भी कच्चा ऐसा अस्थायी अतिक्रमण था जिसे वन विभाग कभी भी तोड सकता था. कोई पक्का निर्माण नहीं किया गया था जिसकी फिक्र में वन विभाग और देवास के जिला प्रशासन के अफसर दुबले होते. बारिश के बाद इन आदिवासियों के घरों के मामले देखे जा सकते थे. लेकिन नहीं कच्चे घास फूस के घर तोडने में पूरी ताकत लगाई गई. हर रोज की कार्रवाई मीडिया को बताई गई. तय था हल्ला मचना, वो मचा, बवाल कटा. इस मुद्दे को लेकर खातेगांव में बहुत कम समय की अपील पर आदिवासियों ने बडा आंदोलन कर डाला. इस मुद्दे को लेकर सीएम डा. मोहन यादव सामने आते हैं, साफ कहा कि वे विजयशाह को देवास भेजेंगे, जो इस पूरे मामले को देखेंगे, शासन को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे. विजय शाह के लिए ये हादसा राजनीतिक वनवास खत्म करने का सुनहरा अवसर बन गया. जो सवाल उठे थे, वो अब नैपथ्य में जाते दिख रहे हैं. इस मौके पर विजयशाह ने पूरी गंभीरता और लगन के साथ आदिवासियों के दुखदर्द बांटे. कार्रवाई करने वाले अफसरों को कोसा और भरोसा दिलाया कि सरकार आदिवासी परिवारों के साथ हैं. उथले कीचड में पीडित परिवारों के घर जाना वापसी में ट्रैक्टर. ट्राली में बैठकर आना खासा सुर्खियां बटोर गया. घास. फूस के घरों में आदिवासी आ चुके हैं और विजयशाह की भी राजनीति की मुख्य धारा में वापसी हो गई. संयोग या प्रयोग ये एक रहस्य हैं, और इस पर पर्दा डला रहेगा.
विजय शाह की राजनीतिक प्रोफाइल देखे तो वो बेहद तगडी हैं. हरसूद विधानसभा सीट पर कुंवर विजय शाह का एक तरफा कब्जा है। वे सात बार से लगातार विधायक हैं। आजादी के बाद 1957 में यह सीट वजूद में आई थी। पीछले 33 सालों से बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है। 1990 के बाद से लगातार विजय शाह यहां से चुनाव जीत रहे हैं। उनके अजेय किले को कांग्रेस आज तक भेद नहीं पाई है। कांग्रेस की सारी रणनीति विजय शाह के आगे ढेर हो जाती है। यह सीट 1977 से अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए रिजर्व है। विजय शाह आदिवासी समाज से आते हैं। बीजेपी की हर सरकार में विजय शाह मंत्री रहे हैं। अभी वह प्रदेश के वन मंत्री हैं। खंडवा में बड़े आदिवासी चेहरे के रूप में उनकी गिनती होती है।

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