प्रदेशवार्ता. महिलाओं ने गांव में पानी का संकट देखा. तय किया कि आने वाली पीढी इसे न भोगे, इसके लिए कुछ काम जरूर करेंगे. किया भी. ऐसा काम कर दिखाया कि गांव के गांव जलसंकट से बाहर निकलने लगे. सरकार ने भी इनके योगदान की सराहना की. मप्र का टीकमगढ जिला गंभीर जलसंकट झेलता रहा हैं. पठारी इलाके पर पानी के लिए ग्रामीण संघर्ष करते रहे. पानी के संकट के बीच कई पीढियां गुजर गई. तब मुट्ठीभर महिलाओं ने मिलकर संकल्प लिया कि आने वाली पीढी को इस संकट और इस संकट से उभरते दर्द से वे बचाएंगी. इसके बाद वजूद में आई जल सहेलियां. इन महिलाओं ने परमार्थ समाजसेवी संस्था की मदद से ‘जल सहेली’ नाम का एक समूह बनाया है। इससे जुड़ी हर महिला को जल सहेली कहा जाता है। जो अपने गांवों में पानी की किल्लत से कैसे बचा जाए, इसे लेकर खूब मेहनत कर रही हैं। जल सहेलियां लोगों को पानी बचाने, संरक्षण करने, कुओं को गहरा करने, पुराने तालाबों को ठीक करने, छोटे बांध बनाने और हैंडपंप को सुधारने जैसे कामों में मदद करती हैं। इसके अलावा, ये सरकारी अधिकारियों से मिलकर समुदाय की भागीदारी बढ़ाने और ज्ञापन देने का काम भी करती हैं। अब इनकी कोशिशों को सरकार ने भी मान लिया हैं.
जहां जल सहेलियों के समूह बने हैं, वहां विकास साफ दिखता है. जल स्रोतों से अतिक्रमण हटा है, पीने का पानी मिलने लगा है और खेती के लिए सिंचाई की समस्या भी कम हुई है। आज परमार्थ संस्था ने पूरे बुंदेलखंड में 2000 से ज्यादा जल सहेलियों का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया है। इस ‘जल सहेली’ मॉडल के जरिए चंदेल काल के पुराने तालाबों को फिर से जिंदा करने का शानदार काम हुआ है
