प्रदेशवार्ता. पुणे के एक मज़दूर की पत्नी प्रसव के लिए अस्पताल में भर्ती हुई। ऑपरेशन सी-सेक्शन हुआ। मज़दूर बेचैन था कि न जाने कितना ख़र्च आएगा, शायद घर गिरवी रखना पड़े। उसने डॉक्टर से घबराते हुए पूछा
“डॉक्टर साहब, क्या हुआ?”
डॉक्टर मुस्कुराए – “आपको लक्ष्मी मिली है, बेटी हुई है।”
“फ़ीस कितनी होगी?”
डॉक्टर बोले – “जब लक्ष्मी जन्म लेती है, तब मैं कोई फ़ीस नहीं लेता।”
यह करिश्मा करने वाले हैं डॉ. गणेश राख, पुणे के। पिछले दस सालों से वे बेटी के जन्म पर एक भी पैसा नहीं लेते। अब तक हज़ार से भी अधिक बच्चियों का नि:शुल्क जन्म करा चुके हैं।
डॉ. राख की माँ ने एक बार उनसे कहा था – “बेटा, जब डॉक्टर बनकर आना ,तब इन लड़कियों की रक्षा करना।” वही सीख आज दुनिया के लिए प्रेरणा बन गई है। उनकी “सेव द गर्ल चाइल्ड” मुहिम ने सीमाएँ पार कर वैश्विक स्तर पर बदलाव की अलख जगाई है।
