प्रदेशवार्ता. समय की गति फिर उल्टी दिशा में घुमने लगी है. देश के अंदर पिछले कुछ सालों में खेतिहर मजदूर फिर से बढने लगे हैं. उद्योगों में छंठनी के चलते गांवों की तरफ ये पलायान हो रहा हैं. देखते ही देखते खेतिहर मजदूरों की तादाद सात करोड हो चुकी है.
सन् 2004 से 2017 के बीच के समय में कामगार खेती की मजदूरी से बाहर निकलकर उद्योगों की तरफ मुढे थे, इसके चलते सात करोड खेतिहर मजदूर कम हुए थे. अब उद्योग बंद हो रहे हैं. नतीजा ये निकला है कि फिर से सात करोड नए खेतिहर मजदूर पैदा हो गए हैं. सबसे ज्यादा खेतिहर मजदूर हिंदी बेल्ट में तैयार हुए हैं. अकेले गुजरात में ही 30 लाख नए खेतिहर मजदूर पैदा हो गए हैं. उत्तरप्रदेश में 17 प्रतिशत का उछाल आया है. मप्र में 10 प्रतिशत संख्या खेतिहर मजदूरों की बढ गई है. ये वे लोग है जो अब शहरों से पलायन कर रहे हैं. ये समय उद्योग जगत के लिए भी बेहद कठिन हो गया हैं. चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने की योजना और चीन से कडी प्रतिस्पर्धा में उद्योग क्षेत्र दबाव में हैं. लोगों की कम होती आमदानी के कारण भी मांग कम हुई हैं. अब तो बडे त्यौहार पर भी बाजार ठंडे रहने लगे हैं. महंगाई ने जहां आम आदमी का गणित बिगाडा है वहीं कामगारों को मजबूर किया है कि वे फिर से अपने गांव को लौट जाए..
