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मां ने अंग्रेजी में एमए कर रखा था, बच्चों की परवरिश बेहतरीन हो इसलिए नौकरी नहीं की… अब आखिरी उम्र में कोई साथ नहीं


प्रदेशवार्ता. उम्र का आखिरी पढाव बीमारी और ढेर सारी लाचारी लेकर आता हैं. चलने. फिरने के लिए भी सहारा लगता है. अगर सहारा मजबूत हो तो बुजुर्गों की आखिरी जिंदगी अच्छे से गुजर जाती है. मां. बाप बच्चों की जब देखभाल करते हैं. उन्हें लायक बनाते हैं तो कोई बडी उम्मीद उनसे नहीं रखते. बस यही रहती है कि उम्र के आखिरी दौर में अपने बच्चों का साथ मिल जाए. ऐसी ही लालसा 80 साल की एक बुजुर्ग महिला भी कर रही हैं. दिल के कौने में हुक उठ रही है कि उनके बच्चे पास आ जाए तो गले लगा ले. शिकवा शिकायतें खत्म कर ले. पर अफसोस सख्त दिल बच्चे नहीं पसीज रहे. बुलावे पर भी सख्ती से न कह रहे.
एक 80 साल की बुजुर्ग महिला का नाम है रेखा द्रिवेदी. वे तीन दिन पहले कुंभ आई थी. किसी नारायणी आश्रम में जीवन के आखिरी दौर में रह रही हैं. कुंभ में आकर भटक गई. लोगों ने परेशान देखा तो मदद करते हुए मेला क्षेत्र के डिजिटल खोया पाया केंद्र पर लेकर आ गए. यहां पर केंद्र वालों ने सम्मान के साथ रहने की व्यवस्था कर दी. बुजुर्ग महिला से पूरी जानकारी जुटाकर महिला के चारों बेटों से संपर्क किया. लेकिन सभी बेटों ने आने और मां को साथ ले जाने से साफ मना कर दिया. जो जानकारी बुजुर्ग महिला ने दी वो हैरान करने वाली हैं. महिला का एक बेटा इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीनियर वकील हैं. दूसरा बेटा कालेज में लेक्चरार है. वहीं दो अन्य बेटे निजी क्षेत्र में नौकरी करते हैं. आज बच्चों के पास मां के लिए वक्त नहीं हैं. लेकिन अपने उज्जवल भविष्य पर मां ने इन्हीं बच्चों के लिए ब्रेक लगाया था. बुजुर्ग महिला रेखा द्रिवेदी ने अंग्रेजी विषय में एमए किया हैं. लेकिन नौकरी नहीं की ताकि बच्चों का लालन पोषण और उनकी पढाई लिखाई अच्छे से हो जाए. बच्चे अच्छे स्कूल में भी पढे. आज बुजुर्ग महिला को मजबूत सहारा चाहिए था तो अपनों ने ही मुंह मोड लिया.  बुजुर्ग महिला के पति अधिवक्ता थे, वे भी बहुत साल पहले दूसरी शादी कर चुके. बुजुर्ग महिला बीमार हुई तो केंद्रीय चिकित्सालय में खोया पाया केंद्र से लाकर भर्ती कराया गया था. अब सेहत ठीक हैं.

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