प्रदेशवार्ता. आजाद भारत की स्याह तस्वीर.. एक दलित अफसर को जमीन पर बैठकर सरकारी कामकाज निपटाना पड रहा हैं. ये महज एक. दो माह का लंबित मामला नहीं है, अफसर को एक साल हो गए है जमीन पर बैठकर काम करते. करते. सवाल है कि जब करोडों के फंड नहीं रूकते तो महज एक टेबल. कुर्सी को लेकर क्यों बजट बीच में आ रहा हैं. दलित अफसर खुद भी कई बार टेबल. कुर्सी की मांग कर चुके लेकिन केवल आश्वासन ही मिल रहा हैं.
ग्वालियर में मध्यप्रदेश भवन विकास निगम में पदस्थ सहायक महाप्रबंधक सतीश डोंगरे पिछले एक साल से जमीन पर बैठकर काम निपटा रहे हैं. आरोप है कि उन्हें जातिगत भेदभाव का शिकार बनाया जा रहा है।
भवन विकास निगम के आफिस में सभी अधिकारियों को चैंबर और टेबल-कुर्सियां उपलब्ध हैं. लेकिन दलित वर्ग से आने वाले अधिकारी सतीश डोंगरे को अब तक फर्नीचर नहीं मिला। वे रोजाना दफ्तर में चटाई बिछाकर जमीन पर बैठते हैं और विभागीय फाइलों का काम निपटाते हैं। डोंगरे का कहना है कि उन्होंने कई बार कुर्सी और टेबल की मांग की लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई।
इस मामले पर निगम के अतिरिक्त महाप्रबंधक अच्छेलाल अहिरवार का जवाब तो बैतुका हैं. वे कहते है भोपाल मुख्यालय को डिमांड भेजी गई है, जब फंड आएगा तभी फर्नीचर उपलब्ध कराया जाएगा। सवाल यह है कि आखिर एक अधिकारी को टेबल-कुर्सी दिलाने के लिए एक साल का वक्त क्यों लग रहा है? क्या यह केवल लापरवाही है या फिर सतीश डोंगरे का आरोप सही है कि उनके साथ जातिगत भेदभाव हो रहा है?
