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रोज आठ घंटे सिर पर ईंटें ढोई, मिसाल है मजदूर से लेकर मेडिकल कालेज तक का ये कठिन सफर

प्रदेशवार्ता. एमबीबीएस डाक्टर बनने का सपना लिए लाखों युवक हर साल नीट एक्जाम में बैठते हैं. बेहद कठिन परीक्षा के बाद वरियता सूची में नाम आने की मारामारी. एक 21 साल के युवक के सिर पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी भी थी, साथ ही उसे नीट क्लियर कर अपना सुनहरा भविष्य भी गढना था. बेहद कठिन रास्ता होने के बाद भी युवक ने गजब की जीवटता दिखाई. अपने सपने को सच करने के लिए कठिन परिश्रम किया. आज वो मिसाल बन चुका हैं. मजदूर से मेडिकल कालेज का सफर किसी दंत कथा से कम नहीं हैं.
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के रहने वाले सरफराज शेख की सफलता ने हर किसी को हैरान कर दिया हैं. 21 साल के युवक सरफराज के पक्ष में कुछ भी नहीं था. परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी तो सरफराज मजदूरी करने लगे. रोज 8 घंटे सिर पर ईंट ढोते. ईंट ढोने के इस काम से रोज के 300-400 रुपए मिल जाते. घर में मां और छोटे भाई. बहन हैं. घर का गुजर ठीक से चल पाए इसके लिए सरफराज पिता के साथ मजदूरी करने लगे.
टूटी छत के नीचे रहने वाले 21 साल के सरफराज ने लोगों के घर बनाए। रोज 200 से 400 ईंटें ढोनी पड़ती थी, रेत उठाना पड़ता था। इस काम से भले ही कमर टूट जाती हो, लेकिन हौसला उतनी ही मजबूत हो गया। दिन भर मजदूरी करने के बाद रात में सरफराज पढ़ाई करते थे। सरफराज के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि उनके पास स्मार्टफोन भी नहीं था। तब उन्होंने अपने शिक्षक से टूटी स्क्रीन वाला फोन उधार लिया। उनके पास कोचिंग जाने का बजट नहीं था। इसलिए उन्होंने उसी टूटी स्क्रीन वाले फोन पर ऑनलाइन लेक्चर अटेंड किए। 8 घंटे की मजदूरी से लौटने के बाद वह 1 घंटे आराम करते थे। फिर नीट का रिवीजन और पिछले सालों के पेपर हल करते थे। सरफराज और उनकी मां का सपना था कि वे डॉक्टर बनें। लेकिन उनके आस-पास के लोगों ने उनका मजाक उड़ाने में कोई कमी नहीं रखी थी।
अब 2024 की नीट परीक्षा का परिणाम जारी हुआ तो सरफराज शेख की मेहनत, लगन और जज्बा अपना रंग दिखा चुका था. सरफराज ने नीट परीक्षा में 720 अंकों में से कुल 677 अंक हासिल किए. अब वो सरकारी मेडिकल कालेज में प्रवेश कर चुका हैं. सरफराज कहते है में डाक्टर बनने के बाद गरीबों का फ्री इलाज करूंगा. सरफराज का संघर्ष एक मिसाल हैं. खासकर उन युवाओं के लिए जो थोडी परेशानी में डिप्रेशन और नशे की तरफ चले जाते हैं. मजदूर से लेकर मेडिकल कालेज तक की उनकी कहानी किसी मिसाल से कम तो है नहीं.

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