प्रदेशवार्ता. तीन दिनों तक देवास जिले सहित पूरे मप्र में गिध्दों की आबादी को वन विभाग के अमले द्रारा गिना गया. हर दो साल में ये गणना होती हैं. हर बार धुक धुकी लगी रहती है कि कहीं इनकी संख्या पिछली बार से भी कम न आ जाए. महज ढाई दशक के अंदर एक प्रजाति विलुप्ति की कगार पर चली गई. आज वजूद पर संकट हैं. गिध्दों का गुम होना प्राकृतिक सफाई सिस्टम का भी खात्मा हैं. इसका खामियाजा आज हम भुगत भी रहे हैं. कई बडी बीमारियां पशुओं से हमारे अंदर आ रही लेकिन हम रोक के लिए कोई ठोस उपाय नहीं कर पा रहे. भारत में 1990 के दशक में पांच करोड गिध्द मौजूद थे, आज ये संख्या 50 हजार के नीचे आ गई. अभी मप्र में जितने गिध्द पाए जाते हैं उसके तीन गुना से ज्यादा आबादी तो एक समय में देवास शहरी क्षेत्र में ही मौजूद थी. आसमान पर जब ये मंडराते तो पता चल जाता था कि कोई मवेशी मर गया है और अपनी खुराक लेने गिध्द समूह में आ चुके हैं. 1990 का वो दौर जब आज के गौमती नगर के पास का नाला मृत मवेशियों को ठिकाने लगाने की जगह हुआ करती थी. मृत मवेशी को जैसे ही यहां लाकर पटका जाता, कुछ देर बीतते कि आसमान में गिध्द मंडराने लग जाते. एक. एक कर सैकडों की संख्या में गिध्द अपना भोजन लेने आ जाते. महज कुछ घंटों में गिध्द मृत मवेशी को साफ कर देते. केवल कंकाल बचता था. अपना भोजन लेकर ये फिर उडान पर निकल जाते. ये दृश्य बेहद आम था. एबी रोड से निकलने वाले लोग दूर से इनके विशाल आकार को देखकर रोमांचित होते. एक पूरी पीढी इन्हें करीब से देखकर गुजरी. लेकिन समय ने करवट बदला और इनकी आबादी खात्में की तरफ चली गई. डाइक्लोफेनाक का पशु-चिकित्सा में उपयोग किया जाने लगा. ये एक गैर–स्टेरॉयडल सूजन–रोधी दवा है जो मांसपेशियों की दर्द के समय लगाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के जेलों, क्रीमों और स्प्रे का एक घटक है। यह दवा पशुओं पर भी समान रूप से प्रभावी होती है और जब कामकाजी पशुओं को इसे दिया जाता है तो उनके जोड़ों का दर्द कम हो जाता है और उन्हें अधिक समय तक कामकाजी बनाए रखता है। इसलिए पशुओं में दर्द निवारक के तौर पर डिक्लोफेनाक का बड़े पैमाने पर प्रयोग गिद्धों की मौत की वजह बन गया. गिध्द इस दवा से इलाज किए गए पशुओं के शवों को खाते थे, वे किडनी फेल्योर की वजह से मर जाते थे.
चूंकि गुर्दों को इस दवा को शरीर से बाहर करने में काफी समय लग जाता है इसलिए मृत्यु के बाद भी यह पशु के शरीर में मौजूद रहता है। चूंकि गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं और इसलिए वे मृत पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर ग्रहण करने लगते हैं। एक बार जब वे डिक्लोफेनाक संदूषित मांस का सेवन कर लेते हैं तो उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती.
