इन नौकरियों से सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को भी खतरा
भारत में पिछले कुछ वर्षों में रोजगार बाजार में एक चिंताजनक बदलाव आया है। कम-भुगतान वाली और निम्न-गुणवत्ता वाली नौकरियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जो खासतौर पर सेवा क्षेत्र में देखी जा रही है। ये नौकरियां न केवल मजदूरी में कमी करती हैं, बल्कि श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को भी खतरे में डालती हैं।
सेवा क्षेत्र में नौकरी का विस्तार और उसकी गुणवत्ता
भारत के सेवा क्षेत्र में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा, मनोरंजन, आतिथ्य, और रेस्तरां जैसे उद्योग शामिल हैं। हालांकि, ये उद्योग पारंपरिक रूप से कम वेतन प्रदान करते हैं और इनमें से अधिकांश नौकरियां अस्थायी या अंशकालिक होती हैं। उदाहरण के तौर पर, रेस्तरां, होटल, और छोटे-बड़े दुकानों में काम करने वाले कई श्रमिकों को न्यूनतम वेतन और बिना किसी विशेष लाभ के काम करना पड़ता है।
औसत वेतन और श्रमिकों की स्थिति
2020-21 में भारत में औसत मासिक वेतन केवल ₹16,000 था, जो कि बहुत कम है। इस आंकड़े से यह साफ़ हो जाता है कि अधिकांश श्रमिक, विशेष रूप से निम्न-स्तरीय श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से भी कम पर काम करना पड़ता है। यह स्थिति विशेष रूप से अस्थायी और अंशकालिक नौकरियों में अधिक देखी जाती है।
इन नौकरियों में अक्सर श्रमिकों को स्वास्थ्य बीमा, पेंशन, और अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है, जो उनके जीवन स्तर और मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
कम वेतन और निम्न गुणवत्ता वाली नौकरियों के कारण
- वैश्वीकरण का प्रभाव: वैश्वीकरण ने भारतीय श्रम बाजार में गहरी प्रतिस्पर्धा पैदा की है, जिसके कारण कई विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियां विदेश चली गई हैं। इससे श्रमिकों की मांग में कमी आई है और उनके वेतन में गिरावट आई है।
- सेवा क्षेत्र का विस्तार: भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार हुआ है, जो पारंपरिक रूप से कम वेतन देने वाला क्षेत्र है। इसके अलावा, कई नौकरियां अस्थायी या अंशकालिक होती हैं, जो स्थिरता और सुरक्षा का अभाव उत्पन्न करती हैं।
कम वेतन और निम्न गुणवत्ता वाली नौकरियों के नकारात्मक परिणाम
- गरीबी का बढ़ना: इन नौकरियों की वजह से लाखों श्रमिक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने पर मजबूर हैं।
- जीवन स्तर में गिरावट: कम वेतन के कारण श्रमिकों का जीवन स्तर प्रभावित होता है। वे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास को पूरा करने में कठिनाई का सामना करते हैं।
- स्वास्थ्य और कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव: निम्न-गुणवत्ता वाली नौकरियों में काम करने वाले श्रमिकों को न केवल आर्थिक रूप से नुकसान होता है, बल्कि उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। स्वास्थ्य बीमा या चिकित्सा लाभ न मिलने से उनकी जीवन गुणवत्ता और भी घट जाती है।
समाधान और सरकार की भूमिका
भारत सरकार को इस गंभीर स्थिति को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
- न्यूनतम मजदूरी का सुधार: सरकार को न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाना चाहिए ताकि श्रमिकों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके।
- श्रमिक सुरक्षा कानूनों का कड़ाई से पालन: श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए श्रमिक सुरक्षा कानूनों को कड़ा और प्रभावी बनाना होगा।
- सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का सुदृढ़ीकरण: सरकार को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सुधारने और विस्तारित करने की आवश्यकता है, ताकि श्रमिकों को बुनियादी लाभ मिल सके, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा, पेंशन योजना, और विकलांगता लाभ।
- सेवा क्षेत्र की नौकरियों में सुधार: सेवा क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के लिए सरकार को प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ, इस क्षेत्र में स्थिर और उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियों के अवसर बढ़ाने चाहिए।
निष्कर्ष
भारत में कम-भुगतान वाली और निम्न-गुणवत्ता वाली नौकरियों की वृद्धि केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और मानवाधिकारों की भी चुनौती है। यदि इसे समय रहते नहीं सुधारा गया, तो इससे श्रमिकों की स्थिति और भी विकट हो सकती है, और इससे व्यापक सामाजिक असंतुलन भी उत्पन्न हो सकता है। सरकार को इस दिशा में ठोस और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि श्रमिकों को एक बेहतर और सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके। साभार सुरेश पांडे
