प्रदेशवार्ता. पुलिस के लिए निकला एक आदेश अब खुद सवालों में घिर गया हैं. नेता अगर दागदार हो, खुद पुलिस ने उसके अपराध की कुंडली बना रखी हो, उसे पुलिस कैसे सैल्यूट कर पाएगी. अपराधों में नेताओं का नाम हो, पुलिस थाने पर केस दर्ज हो, ऐसे माननीयों को आखिरकार पुलिस की तरफ से कितना सम्मान मिलना चाहिए…? मप्र के पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना के हस्ताक्षर से जारी हुए निर्देश ने एक नयी बहस छेड दी हैं. आरोपी को अगर पुलिस सैल्यूट करेगी तो फिर ईमानदारी से अपना कर्तव्य किस तरह पूरा करेगी.
मप्र विधानसभा में इस समय 230 में से 89 विधायकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं. भाजपा के 163 में से 51, कांग्रेस के 66 में से 38, इनमें 17 कांग्रेस विधायकों पर गंभीर अपराध के केस दर्ज हैं. याने कांग्रेस के 58 प्रतिशत, भाजपा के 31 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. मप्र सरकार के 31 मंत्रियों में से 12 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. तीन मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक धाराओं में केस रिकॉर्ड हैं. विधायकों पर दर्ज मामले पुलिस मुख्यालय के आदेश पर सवाल खडा कर रहे हैं. एक थ्योरी ये भी है कि नेताओं पर केस के मामले चुनाव के समय बनते हैं, जो प्रतिशोध के चलते सामने वाला विरोधी दर्ज करा देता हैं.
मप्र में 2018 में बनी कमलनाथ सरकार में तो दागी विधायकों का अनुपात दस फीसदी बढ गया था. उस समय 230 विधानसभा सदस्यों में से 94 विधायकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज थे. इनमें 47 विधायकों के ऊपर गंभीर मामले दर्ज थे. पुलिस मुख्यालय से निकला आदेश इस बार सवालों में घिर चुका हैं. इस आदेश पर घमासान मचा हैं.
