प्रदेशवार्ता. मप्र सरकार को एक बार गृह विभाग की रिपोर्ट अच्छे से पढना चाहिए. सरकार इन दिनों महिलाओं के अधिकारों को लेकर जनजागरूकता के कई आयोजन कर रही हैं. महिला अधिकारों को लेकर विधि विभाग भी आयोजन कर कानूनी अधिकार बता रहा हैं. लेकिन सच्चाई बेहद उलट और कडवी है. महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले केस दर्ज होने के बाद भी बचकर साफ निकल रहे हैं. महिलाओं के खिलाफ दो साल पहले 2023 में अपराध करने वालों में से केवल 21 प्रतिशत को ही सजा हुई. वहीं पिछले साल 2024 में ये आंकडा 19 प्रतिशत को ही सजा का रहा. मप्र की तस्वीर कहती है कि महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. अपराधी बुलंद हौसलों के साथ इसी समाज में पल बड रहे हैं. गृह विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में गंभीर महिला अपराध जैसे दुष्कर्म, दुष्कर्म के बाद हत्या, हत्या, हत्या के प्रयास, एसिड अटैक, दहेज हत्या आदि शामिल है. इन गंभीर अपराधों को लेकर कुल 7048 मामलों पर जिला एवं सत्र न्यायालयों में निर्णय हुआ, जिसमें से 5571 मामलों में आरोपित बरी हो गए. केवल 1477 मामलों में ही सजा हो पाई. ये सजा के मामले कुल 21 प्रतिशत ही होते हैं, जो काफी निराशाजनक है. इसी तरह पिछले साल 2024 की बात करे तो इसे लेकर गृह विभाग की रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल जनवरी से सितंबर के बीच कुल 4357 प्रकरणों में निर्णय हुआ जो सीधे महिला अपराध से जुडे थे, इनमें से केवल 835 मामलों में ही सजा हो पाई. और सीधे. सीधे 3522 मामलों में आरोपित बच गए. याने केवल 19 प्रतिशत में ही दंड मिला. महिला अपराध में बचकर निकलने वालों को साक्ष्य संकलन की कमजोरी और विवेचना में देरी का लाभ भी मिल रहा है. भारी दबाव के चलते पक्षकार भी समझौता कर लेते हैं.
मप्र में हर साल तीस हजार मामले महिला अपराध से जुडे हैं. जब तक साक्ष्य संकलन के तौर तरीकों को ज्यादा प्रभावी नहीं बनाया जाएगा अपराधी कानून की पकड से बाहर रहेगा. सरकार पुलिस महकमें के खाली पदों को भरे, डीएनए सैंपलों की जांच में तेजी लाए, ऐसे ही अन्य कुछ सुधारों के बाद ही महिला अपराध के दोषी सलाखों के पीछे जाएंगे.
