- अब कोई भी जज किसी भी स्थानीय नेता से पिटीशन लेकर सर्वे कराने लगा है
भारत की सभ्यता तीन हजार साल पुरानी है। और सभ्यताओं, धर्मो, मतावलंबी कबीलों में संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है।
इस दौरान हजारो धर्म स्थल बने टूटे, रूप परिवर्तित हुए। इससे जुड़ी कटुता, हमारे जेहन में विद्यमान है।
तो ऐसे इतिहास की बुरी छाया, हमारे वर्तमान और भविष्य पर न पड़े। इसके लिए प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट आया।
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यह एक्ट, ऐसे तमाम विवादों को 15 अगस्त 1947 में फ्रीज कर देता है।
याने रिपब्लिक ऑफ इंडिया की जिस दिन नींव पड़ी, उस दिन जो धर्मस्थल बौद्ध था, मुस्लिम था, हिन्दू था। वो सिख था, पारसी या जैन धार्मिक महत्व का था-
वह वैसा ही रहेगा।
यह एक्ट, एक लॉजिकल एग्जिट पॉइंट देता है। कलह, दुश्मनी, दंगे, फसाद, और व्यर्थ खून की नदी को त्याग, एक नए दौर में प्रवेश का।
छोड़ो कल की बाते, कल की बात पुरानी
नए दौर में लिखेंगे, मिलकर नई कहानी
हम हिंदुस्तानी!!
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इस एक्ट में दो और चीजें उल्लेखनीय थी। पहला यह एक्ट बाबरी/रामजन्म भूमि पर लागू नही था। यहां का विवाद पहले से ही कोर्ट में था, सो इसे कोर्ट पर छोड़ दिया गया।
दूसरा- यह एक्ट इस तरह के किसी अन्य एक्ट को ओवरराइड करेगा।
याने केंद्र या राज्य विधानसभाओं का कोई कानून इसके प्रावधानों के प्रतिकूल हो, तो उनके ऊपर यह एक्ट प्रभावी होगा।
यह एक सशक्त डिटरेंट था।
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1991 के इस एक्ट के खिलाफ संघ के कुछ कार्यकर्ताओ ने 2021 में अपील की। इसे हिन्दूओ की भावनाओ के विरुद्ध और अनकॉन्स्टिट्यूशनल बताया।
सुप्रीम कोर्ट के उच्चतम आसनों में बैठे, इतिहास, प्रशासन, संविधान, और न्याय के प्रकांड मेधावान जजो को, जिन्हें हमारे आईन ने रूल ऑफ लॉ का संरक्षक बनाय था, उन्हें ये तत्क्षण खारिज कर देना चाहिए था।
पर डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इसे स्वीकार किया। और सरकार से ओपीनियन मांगा।
इस तरह Cane of worms खोल दिया।
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इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने धर्मस्थलों के स्वरूप परिवर्तन की किसी कोशिश पर ब्लेंकेट स्टे देने से इनकार कर दिया।
अयोध्या मामले में कोर्ट द्वारा कराए गए सर्वे भी नजीर बने। तो लोवर कोर्ट्स की भी हिम्मत बढ़ी।
अब कोई भी जज किसी भी स्थानीय नेता से पिटीशन लेकर, सर्वे कराने लगा है।
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सर्वप्रथम, कलहप्रेमी यूपी के कलहप्रेमी नेता अपने कलहप्रेमी समर्थकों के साथ, कलहप्रेमी जजो के आदेश पर सर्वे करने निकल चुके है।
संभल मामला इसी की नजीर है।
लेकिन इसे कलहप्रेमी, अभागे प्रदेश की घटना न समझी जाए।
अगर आपके शहर में कोई मस्जिद, मजार, इस्लामी धार्मिक प्लेस है, तो उसे लेकर आपके शहर को संभल बनाये जाने की कोशिशें शुरू हो चुकी होंगी।
आखिर वोट और ध्रुवीकरण की आवश्यकता केवल यूपी में ही है, ऐसा क्यो लगा था आपको?
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सिर्फ धार्मिक स्थल नही, वक़्फ़ बोर्ड की प्रॉपर्टीज भी दंगो की गंगोत्री बनेंगी।
वक्फ बोर्ड को लेकर तमाम प्रचार और इस कानून से छेड़छाड़ की कोशिश, इसी दिशा में दूसरा कदम है।
तब धार्मिक स्थल ही नही, हर नॉनरिलिजियस,हिस्टोरिकल, पुरानी प्रोपर्टी पर, बहुसंख्यको के कब्जे, फिर कोर्ट मुकदमे की राह खुलेगी।
ये नए मुद्दे, नए नए सर्वे, दंगे, और अराजकता का बहाना देंगे।
यहां कब्जा करने की औकात आपकी कतई नही होगी। कोई रसूखदार व्यक्ति, या संस्था, कंपनी ही इसका फायदा लेगी। आपके हिस्से तो सिर्फ हिन्दू मुस्लिम विमर्श का आनंद होगा।
और कीमत में कुछ बच्चों की लाशें देनी है। तब याद रहे, हिन्दू लाश ज्यादा लाभ देती है।
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डीवाई चंद्रचूड़ वाहिद आदमी हैं।
भारत ने उन्हें सबकुछ दिया, जो उन्हें दे सकता था। उन्होंने देश से वह सब कुछ लिया, जो एक जीवन मे वह पा सकते थे।
मगर जब समाज को, भावी पीढ़ियों को कुछ देने का समय आया.. बाकायदा पद, जिम्मेदारी और कर्तव्य के रूप में आया, वे मुकर गए।
पर उन्हें अकेले क्या दोष देना।
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भारत का पढ़ा लिखा, धनी, रसूखदार, प्रभावशाली वर्ग भी अपने प्रोफेशनल, वित्तीय और प्रभाव के बचाव- बढ़ाव की कोशिश में भागीदार बना हुआ है।
दरअसल भारत आज अपने इंटेलेजेंसिया के वृहत्तम धोखे के खंजर से लहुलुहान है।
और टपकता हुआ ये जरा सा लहू तो महज शुरुआत है।खून की नदी की ओर इस देश के कदम फिसल चुके हैं।
पुलिस, कोर्ट, सरकार, मीडिया, पत्रकार, लेखक, वक्ता, कवि, कार्टूनिस्ट, सेलेब्रिटी सभी गिद्ध बन अपने अपने हिस्से की बोटी तलाश रहे हैं।
ये बोटी आपके ही बदन से नुचेगी।
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फिर कुछ बरसों बाद हम पलटकर देखेंगे तो पाएंगे कि इस फिसलन में धक्का देने वाले हाथ इसी इंटेलेजेंसिया के सफेद कॉलर, और नीली आस्तीनों से सजे थे।
तब जो आपके हृदय से उद्गार निकलेंगे,
वही उनकी लेगेसी होगी।
यही उनका उन्वान होगा।
यह बात तमाम, अलग अलग जगहों पर बैठे चन्द्रचूड़ो को जान लेनी चाहिए।
साभार रिबोर्न मनीष✍️
